Friday, December 01, 2006

 

गांधी के आड़ मे भारतीयता पर चोट

गांधी जी की महानता को मै कम नही कह रहा हूँ, पर हमारे सामने जिस तरह से तस्‍वीर प्रस्‍तुत की जा रही है कि आज़ादी केवल गान्‍धी और काग्रेस के संर्घषों का परिणाम है, वह सरासर गलत है, शिक्षा प्रणाली मे मे गांधी को महान तो चन्‍द्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे महान क्रन्तिकारियों को शैतान(आतंकवादी) की संज्ञा दी जाती है। शिवाजी तक का अपमान किया जाता है। यहां तक कि सिक्‍ख धर्म गुरूओं को भी बक्‍सा नही जा रहा है, जो कि सिक्‍खों के लिये भगवान तुल्‍य है।रोमिला थापर जैसे बाम पंथी आपने सर्मथन की कीमत अर्नगल इतिहास पढा कर वसूल कर रहे है।
हर तरफ भारतीयों के भारतीयता और राष्‍ट्रवाद और दुखती रग को दबाने का प्रयास किया जाता है। यह सोची समझी नीति का नही तो क्‍या है। 1857 से लेकर 1920 तक किया गया संग्राम व्‍यर्थ था और 1920 के आस पास गांन्‍धी जी ने जो कुछ किया वही सब कुछ हुआ। ताली एक हाथ से नही बजती है, दोनो हाथो की जस्‍रत होती है। जहाँ देखिये राजीव गांधी, महात्‍मा गांधी, इन्दिरा गांधी, नेहरू आदि के नाम पर परियोजना चालू कर दी जाती है। क्‍या ये ही राज नेता महान थे, लाल बहादुर शास्‍त्री, नंदा, मोरार जी देसाई, चौधरी चरण सिंह, नरसिम्‍हा राव क्‍या ये महान भारत के प्रधान म‍न्‍त्री नही थे। गांधियो के सिग पूछ लगी थी, और ये पूर्वप्रधान मन्‍त्री बिना सिह-पूछ के थे। क्‍या यह दोहरे माप दण्‍ड नही है। चलिये मोरार जी देसाई, चौधरी चरण सिंह गैर का्ग्रेसी थे किन्‍तु लाल बहादुर और राव तो काग्रेसी थे। उनका उपेक्षित किया जाना कहां तक उचित है। बात यही है वे काग्रेसी तो थे पर गांधी न थे।
भारत को अब गांधियों के चंगुल से मुक्‍त करना होगा। यह‍ विरोध आगे जारी रहेगा आप भी इस विरोध मे सामिल होइये, अपनी अभिव्‍यक्ति को सामने लाइये। आखिर आप कब तक चुप रहेगें, अब बोलने का समय है।

Thursday, November 30, 2006

 

भारत दुर्दशा के जिम्‍मेदार

गांधी जी, महान थे, महान है और महान रहेगे, पर उन्‍हे जितना महान बना दिया गया वे महान बने रहे किन्‍तु उनकी महानता के आगे अन्‍य स्‍वातंत्रता संग्राम सेनानियों के महत्‍व को नही भूलना चाहिये। तत्कालीन काग्रेसी सरकार भारत मे एक प्रकार से नेहरू गांधी परिवार की अघोषित राजतन्‍त्र लाना चाहती थी। इसी के परिपेक्ष मे भारतीय राजनीत‍ि के स्‍वरूप को नेहरू गांधी तक सीमित रखा गया। तत्‍कालीन सरकार की सोची समझी नीति थी कि भारतीयों मे गांधी के नाम को इस प्रकार रमा बसादिया जाये कि जनता इसी मे बसी रहे। पहले तो गांधी की कीमत एक रूपये कि थी, अब उसे एक हजार मे बदल दिया गया है1 पहले टिकट मे थे अब नोटो मे। क्‍या सराकर के नजरो मे गांधी से महान और कोई नही है, क्‍या नोटो पर गांधी जी का एकाधिकार बरकारार रहेगा।
भारत रत्‍न मुद्दे की बात कहू तो सुभाष चन्‍द्र बोस, सरदार पटेल और गुलजारी लाल नन्‍दा की औकात इतनी गिरि हुई थी कि इनहे राजीव गान्‍धी को बाद भारत रत्‍न दिया गया। यही इन्दिरा गान्‍धी के लिये उन्‍हे 1971 मे दिया गया और सुभाष चन्‍द्र बोस, सरदार पटेल और गुलजारी लाल नन्‍दा और अन्‍य देश भक्‍तो को उनसे बाद यह पुरस्‍कार दिया गया क्‍या यह अपमान नही है।
जिस प्रकार महात्‍मा गांधी को भारत रत्‍न नही दिया दिया था (सम्‍मान मे क्‍योकि वे भारत रत्‍न से बढ़कर थे) उसी प्रकार अन्‍य राष्‍ट्र भक्‍तो के अपने से कनिष्‍टो के बाद यह सम्‍मान देना उनका अपमान नही है। सर्वोच्‍च न्‍यायालय मे एक बार ऐसा ममला हुआ था जब तत्‍कालीन सरकार ने अपने चहेते को मुख्‍य न्‍यायधीश बनाने के लिये उच्‍च न्‍यायालय की वरिष्‍ठता का उल्‍लंघन करते हुये कई न्‍यायधीशो से कनिष्‍ट को मुख्‍य नयायाधीश बना दिया था और सारे बरिष्‍ठ न्‍याधीशो ने अपने वरिष्‍टता के सम्‍मान के लिये अपने पद से त्‍यागपत्र दे दिया था, कोई अपने कनिष्‍ट के अधीन कैसे रहना पंसन्‍द कर सकता है और नियम-नियम होता है, वरिष्‍ठो को ही वरीयता दी जाती है। चाहे बरिष्‍ट न्‍याधीश का कार्यकाल एक दिन ही शेष क्‍यो न हो। वह दिन दूर नही जब 'गान्‍धी सर्टिफिकेट' के कारण सोनिया, प्रियका और रहुल गान्‍धी को भारत रत्‍न, हमारे प्रधानमन्त्री से आगे न दे दिया जाये।
मै राष्‍ट्रपिता के रूप मे महात्‍मा गांधी को सर्वमान्य नही मानता हूँ। सरकार के द्वारा भारतीयो पर थोपा गया एक बोझ है, जिसे हम ढोरहे है। जनमत सर्वेक्षण से ही स्‍पष्‍ट हो सकता है कि महात्‍मा गांधी कितने लोकप्रिय है। धोती और लाठी के बल पर विरोध प्रर्दशन किया जा सकता है, आजादी नही प्राप्‍त की जा सकती है। गांधी जी के साथ उस समय भारत के सबसे बऐ राजनैतिक दल का्ग्रेस का हाथ था जिसे सुभाष चन्‍द्र बोस, गोपाल कृष्‍ण गोखले, मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय ने सीचा था इस दल के कारण अंग्रेज गान्‍घी जी भाव देते थे, अगर काग्रेस न होती तो गांघी जी को अग्रेजो न कब का ठिकाने लगा दिया होता। अग्रेज जानते थे कि ये बुड्डा जब तक है हम मन मानी कर सकते है और उन्‍हे भी अपने प्राण प्रिय थे, अग्रेज यह भी जानते थे कि गांधी जी ही अग्रेजो की ढाल है, गान्‍धी के रहते अग्रेजो का कोई बाल बाका नही कर सकता है। गान्‍धी को रास्‍ते से हटना उनके लिये ओखली मे सिर डालने के बराबर होगा। का्ग्रेस जो गरम-नरम दल मे बट गई थी वह गान्‍धी के हटने से फिर गरम मे परिवर्तित हो सकती थी, और अग्रेंजों के खिलाफ व्‍यापक क्रान्ति हो सकती थी। और यह अग्रेजो के हित मे न था, और गांधी जी का आग्रेजो ने गोल मेज सम्‍मेलन मे चाय पिला कर खूब भारत के खिलाफ खूब उपयोग किया।
अब समय आ गया है कि विचार परिवर्तन कान्ति का, अपनी बात रखने का, मै रामदेव महाराज के बातो से आज ही सहमत नही हुआ हूँ, मैने अपने पहले के लेखों मे इसका वर्णन किया, आज की सरकार और काग्रेस गांधी जी को कितना ही महान कहे, किन्‍तु किसी अन्‍य देश भक्‍त के बलिदान के नगण्‍य न समझा जाये।

Saturday, October 28, 2006

 

Hinduism

The infiltration of terrorists into India and the persecution and genocide of Hindus in Bangladesh

Sunday, October 15, 2006

 

ह्या फारुक अब्दुलाचे डोके ठिकाणावर आहे काय?

वंदे मातरम,

सि.न.न. वाहिनीला दिलेल्या मुलाखतीमध्ये फारुक अब्दुलानी थेट भारतास आव्हान दिलेले आहे. त्यानी असे म्हटले आहे कि जर अफजलला फाशी झाली तर न्यायाधिशांचे मुडदे पडतील. ह्याला त्याने दुजोरा दिलाय तो "मकबुल बट"ह्या अतिरेक्याला फाशीची शिक्षा सुनावणारे न्या. निळकंठ गंजुचा. ह्या न्यायमुर्तिंना काश्मिरमध्ये गोळ्या घालुन ठार मारण्यात आले. आपण ह्यावरुन असे समजू शकतो की तेथिल अतिरेक्याच्या मनात असणारी आपल्या बद्दलची भावना आणि आपल्या बद्दलचे मत. तेथिल मुसलमान जनतेने केलेल्या उग्र निदर्शनावरुन पण त्यांचे मत काही ह्याच्या पेक्षा काही वेगळे असतील असे म्हणता येणार नाही. काही लोक म्हणतात कि ह्यच्या ह्या बोलण्याचा अर्थ असा होऊ शकतो कि, तेथिल अतिरेकि हे काय करु शकतात. ह्याचे समर्थन करता येणार नाही, कारण ह्यच्या आधीपासुनच फारुकनी अफजलच्या फाशीला विरोध केलाय. अतिरेकी क्रुत्य करणारयांना धर्म नसतो असे एकिकडे म्हणणारे नेते दुसरिकडेत्याचे वकिलपत्र घेतल्या प्रमाणे त्याची बाजू घेत आहेत. वकिलपत्र नाकारुन आणि राष्ट्रपतींकडे त्याच्या बायकोने दिलेल्या माफी पत्रावर सही न करणारा अफजल किती निरढावलेला आहे असे दिसते. व दुसरीकडे काही महाभाघ त्याच्याबाबतीत र्निणय हा एकतर्फी आहे असे म्हणत आहेत. ह्या वरुन अफ़जला नायक (हिरो) व्हायचय असेच दिसते.

मुंबईतील झालेल्या लोकलमधिल विस्फोट मालिकेमागे पकिस्तानचाच हात आहे असे म्हणुन नंतर भारताने पाकिस्तानशी असणारे राजनितिक संबध तोडुन टाकले. हे वागणे किती बेजवाबदार आहे हे नंतरच्या क्रुत्यावरुन जाणवते. ब्राझिल देशात झालेल्या परिषदेनंतर एका महासत्तेच्या (अमेरिकेच्या) दबावाल झुकुन परत हे संबध जोडण्यात आले. आपल्या केंद्रसरकारची मते हि परखड नसल्याने अश्या महासत्तेच्या दबावाला झुकावे लागते. आपले व माझे आवडते राष्ट्रपती म्हणतात कि आपणहुन आपल्या देशाला आपण महासत्ता संबोधले पाहिजे अणि दुसरीकडे आपले राज्यकर्त्यांच्या नितीमुळे आपणास महासत्तेच्या दबावापुधे झुकावे लागते. आज जगात महासत्ता म्हणुन उदयास येण्यास भरपुर वेळ असला तरी, आपणास अजुनही आशियाखंडामध्ये आपला पत्ता जमावता आलेला नाहिये.

आपले राज्यकर्ते हे आपल्यातच भाडणं लावुन स्व:ताच्या पोळ्या भाजण्याचे काम करत आहेत. संसदेवर हल्ला करणारयास मोकळे सोडणार नाही असे म्हणणारे, दुसरीकडे त्याच्य बायकोच्या शिक्षा माफ़िच्या अर्जावर विचार करत आहेत. एकुणच हा प्रकर आपण बघण्या पलिकडे काही करु शकत नाहि. १९६१ च्या कायद्या नुसार आपणास अजुनही मत बाद करण्याचा अधिकार मिळालेला नाही. त्यामुळे कितिही ठरवुन सुद्धा त्यांना आपण धडा शिकवू शकत नाही.

जर अफजलची फाशी रद्द झाली तर त्याचे परिणाम फार भयंकर होतिल व ते पुर्ण भारतवर्षात दिसतील. म्हणजे १९९३ च्या स्फोट मालिकेतील आरोपीना सुद्धा माफी द्यावी म्हणुन सर्व भारतातील मुसलमान उग्र निदर्शने करतील. आणि आपण बघ्याची भुमिकेशिवाय काहिही करु शकणार नाही.

आतातरी एकत्रितपणे आपल्या सर्व राजकिय पक्षातिल लोकांनी एकत्र येऊन ह्या गोष्टीच विरोध करायला पाहिजे नाहि तर पुढिल १५ वर्षा नंतर महासत्ता तर सोडा, साधा एकसंध राष्ट्र म्हणुन सुद्धा उभे राहू असे सागंता येणार नाही. १३% च्या मतपेटी साठी ८० कोटी जनतेला वेठिस धरणे बंद करावे. अन्यथा आपन आपले अस्तित्व सुद्धा टिकवू शकणार नाही.

गप्प बसणे म्हणजे ह्याला विरोध करणे असे होत नाही. जर राज्यकर्ते"आपल्यावर कोणी वार केला तर आपण पलटुन वार करायचा नाही; ह्याने वार करणारयाच्या मनात आपल्या बद्दल मान वाढतो" अश्या भोळ्या-भाबड्या गांधीगीरीच्या सिंद्धांतावर अवलंबुन राहिल्यास हे शहाणपणाचे होणार नाही.

!! जय हिंद, जय महाराष्ट्र !!

योगेश रत्नाकर फाटक.


Sunday, October 08, 2006

 

गांधी वाद खडा चौराहे पर!

देश की सत्‍ताधारी पार्टी कांग्रेस के द्वारा अलग-अलग समय के अलग-अलग नेतृत्व के संबंध को लेकर आज देश दुविधा में है। आज सम्पूर्ण देश सिर्फ यही सोच रहा है कि कांग्रेस तब ठीक थी अथवा अब। मै बात कर रहा हूं आज से 75 साल पहले की घटना कि जब काग्रेंस का नेतृत्‍व अपरोक्ष रूप से गांधी जी करते थे, तब जो स्थिति काग्रेंस मे महत्‍मा गांधी की थी आज उससे भी बढकर सोनिया गांधी की है। व्‍यक्ति तथा उद्देश्‍य अलग अलग है किन्‍तु घटना एक ही है उस समय भी संसद (नेश्‍नल असेम्‍बली) में बम विस्फोट किया गया था आज भी संसद पर हमला किया गया है। तब हमला करने का मकसद देश भक्ति थी और आज वतन के साथ गद्दारी है।

आज संसद पर हमला एक वाले अंतकवादी की फांसी की माफी वही पार्टी कर रही है जिसने वीर शहीदो भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की फांसी माफी का विरोध किया था, गांधी जी का कहना था कि मै अहिंसा के मार्ग रोडा डालने वाले का समर्थन नही करूंगा, तब के देश भक्‍त अहिंसा के मार्ग मे रोडा थे तो आज के गद्दार कौन शान्ति के कबूतर उडा रहे है? यह वही पार्टी है जब तीनो देश भक्‍तो को फांसी पर लटकाया जा रहा था तो काग्रेस गा रही थी- साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। तब से आज तक इस पार्टी ने कमाल करने मे कहीं क‍मी नही की है, तब काग्रेस मे गांधीवादी के रूप मे कमाल हो रहा था तो आज आंतकवादी के रूप मे हो रहा है। आज कग्रेस बीच चौराहे पर खडी है, वह तब से आज के दौर मे 180 अंश पलट चु‍की है। आज काग्रेस के एक मुख्‍यमंत्री फांसी का विरोध कर रहे है तो काग्रेंस नेतृत्‍व मूक दर्शक बनी हुई है, तब भी काग्रेस मूक दर्शक की भातिं खडी थी जब पूरा देश गांधी जी से तीनो शहीदो की प्राणो की भीख मांग रहा था। पूरे देश को पता था कि गांधी जी ही वीर शहीदो भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी से बचा सकते है पर अपनी हटधर्मिता के कारण गाधी जी ने फांसी से माफी बात नही की, अन्‍यथा गांधी ही वह नाम था जो अग्रेजो से कुछ भी मनवा सकता था। उनके सिर पर भूत सवार था कि अहिंसा का, पर अहिंसा की नाक आगे अगेंजो ने कितनो का दमन किया तब कहां था गांधी की अहिंसा। आज उस पार्टी के एक मुख्य मंत्री आंतकवादी का सर्मथन कर रहे हैं। काग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी मौन हैं। इस मौन का अर्थ समर्थन माना जाय या असमर्थन। जहां तक पार्टी प्रवक्ता सिंघवी की बात है वे अपने बयान में मुख्य मंत्री का समर्थन कर चुके हैं। आज देश के समक्ष प्रश्‍न है क्‍या वही गांधी की काग्रेस है यह फिर गांधी के आर्दश गांधी के साथ दफना दिये गये?
वह समय देश की आजादी का था देश के बच्चे की अपेक्षा थी कि गांधी जी इरिविन पैक्ट में अपनी मांगो में भगत सिंह आदि की फांसी को मांफी की मांग रखें किन्तु गांधी ने स्पष्ट कहा था इनकी मांफी हिंसा को बढ़ावा होगी। हम हिंसा का समर्थन नहीं कर सकते। आज देश के प्रत्येक देश भक्त व्यक्ति की इच्छा है कि लोकतंत्र की हत्‍या करने वाले अभियुक्त को फांसी दी जाये, किन्तु आज का नेतृत्व कुछ और सोच रहा है। यही बात मन में खटकती है। प्रश्न उठता है कि क्या कांग्रेस सदैव देश की सामूहिक इच्छा के विपरीत काम करेगी? इससे तो यही प्रतीत होता है गाधी वाद दो अक्‍टूवर तक श्रद्धा के फूलो तथा नोटो पर फोटो तक ही सीमित रह गया है। और इन नेताओ ने गांधीवाद को वोट की खातिर चौरहे पर लाकर खडा कर दिया है। आज उनके वंशज गांधी वाद की नीव मे माठा डालने का काम कर रहे है । जो भूल गांधी ने तब की थी आज उनके वंशज कर रहे है।

मूल लेखक : प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह (हिन्‍दी)
अनुवाद कर्ता योगेश फाटक जी (मराठी)

Saturday, October 07, 2006

 

चव्ह्याट्यावर उभा गाधींवाद!!!

देशतील सत्ताधारी पक्ष कांग्रेस कडुन वेगळ्या-वेगळ्या वेळीवेगळ्या-वेगळ्या नेतेसंबधामुळे आज देश द्विधा मनःस्तिथित आहे. आज संपुर्णदेश हाच विचार करत आहे कि कांग्रेस तेव्हा ठिक होती कि आज! होय मी बोलत आहे आजपासुन ७५ वर्षा पूर्वीच्या घटने बद्दल, कि जेव्हा कांग्रेसचे नेर्तुत्व अपरोक्षपणे गांधीजी करत होते, तेव्हा जी स्थिती कांग्रेसमध्ये गांधीजीची होती आज त्यापेक्षाही मोठी सोनियां गांधीची आज आहे. व्यक्ती तसे उद्देश वेगळे वेगळे आहेत पण घटना एकच आहे. त्यावेळी सुद्धा संसद भवनामध्ये स्फोट केला होता व आज संसदेवर हल्ला केला गेला. तेव्हा स्फोट घडवण्यामागे उद्देश देशभक्ती होती आणि आज देशद्रोही पणा आहे.

आज संसदेवर हल्ला करणारया अतिरेक्यांची फाशीची शिक्षा रद्द करावी ह्याची मागणी करत आहेत, कि ज्या पक्षाने इतिहासामध्ये शहिद भगतसिंग, सुखदेव आणिराजगुरु ह्यांची फाशीची शिक्षा माफ करावी ह्याचा विरोध केला होता. गांधीजीच्या म्हणण्याप्रमाणे अहिंसेच्या मार्गामध्ये आड येणारयांचे समर्थन करणार नाही, जरी ते भारतीय असले तरी. जर तेव्हाचे देशभक्त अंहिसेच्या मार्गावर आडकाठी आणणारे होते, तर आजचे गद्दार/देशद्रोही काय शांतीच्या नावे काय कबुतरे उडवत आहेत? हाच पक्ष त्यावेळी ह्या तिन देशभक्तांना फाशी देत असताना गात होता"साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल". तेव्हा पासुन ह्या पक्षाने आजपर्यंत कमाल करण्याचे सोडलेले नाही. तेव्हा कांग्रेसमध्ये गांधीवादाने कमाल होत होता, तर आज आंतकवादीच्या रुपाने होत आहे. आज कांग्रेस ज्याठिकाणी उभी आहे ती, त्यावेळेपासुन १८० अंशात पलटली आहे. आज त्याच पक्षाचा मुख्यमंत्री फाशीचा विरोध करत आहे, तर पक्ष नेर्तुत्व मुकपणे बसलॆ आहे. तेव्हासुद्धा तो मुकपणेच बसला होता, ज्या वेळेला संपुर्ण देश क्रांतिकारकांच्या प्राणांची भिक मागत होता. संपुर्ण देशाला माहित होते गांधीजी ह्या तिन शहिद भगतसिंग, सुखदेव आणि राजगुरु ह्यांना वाचवू शकतात, पण आपली अंहिसेला (धर्म हट्टाला) पेटुन गांधीजींनी फाशीची शिक्षा रद्द करावी असें म्हटले सुध्दा नाही. गांधीजींचे असे व्यक्तिमत्व होते कि ते इंग्रजांकडुन ते काहीही मनवुन घेऊ शकत होते. पण नाही, त्यांच्या डोक्यावर भुत होते अहिंसेचे. पण अहिंसेच्या नाका समोर इंग्रजांनी कित्येकांना वेठिस धरले, तेव्हा कुठे गेली होती अहिंसा? आज त्याच पक्षाच मुख्यमंत्री आतिरेक्यांचे समर्थन करत आहे. आणि कांग्रेस अध्यक्षा मौन बाळगुन आहेत. ह्या मौनाचा अर्थ समर्थन मानायचा कि असमर्थन? आज तर पक्षाचे प्रवक्ते सिघंवी साहेबाच्या बोलण्यातुन मुख्यमंत्र्याचे समर्थनच केले आहे. आज देशा समोर प्रश्न उभा आहे कि हि गांधीजीची कांग्रेस आहे, का हि गांधीजींच्या आर्दशा समवेत गाडुन टाकली आहे.

तो काळ हा देश स्वातंत्र्याचा होता. त्यावेळी देशाच्या सुपुत्राची अपेक्षा होती कि गांधींजी इरविन पैक्ट मध्ये आपल्या मागण्यामध्ये भगतसिंग आणि आदी यांच्या फाशी माफीची मागणी करावी, पण गांधींनी स्पष्टपणे सागितले कि ह्याची माफी मागणे म्हणजे हिंसेला प्रोत्साहन देण्यासारखे आहे. मी हिंसेचे समर्थन करणार नाही. आज प्रतेक देशवासीयांची इच्छा आहे कि लोकतंत्रावर (संसदेवर) हल्ला करणारय़ची फाशी पुढे अथवा रद्द करु नये. पण आजचे नेर्त्रुत्व काही वेगळा विचार करत आहे. ह्याचीच मला खंत वाटतीय. मनामध्ये प्रश्न उठतो कि कांग्रेस सदैव देशाच्या सामुहिक विचाराच्या विपरित काम करणार? ह्यातुन हेच सिद्ध होतय कि गांधींवाद २ औक्टबरला श्रद्धेने फुल आणि नोटांवर प्रतिमा छापण्या पर्यंतच सिमित आहे. आणि आत्ताच्या नेत्यांनी गांधींवादाला चव्हाट्यावर आणुन ठेवले आहे. आज त्यांचेच वंशज गांधींवादावर मुठमाती टाकण्याचे काम करत आहेत.

जी चुक गांधींनी त्यावेळेला केली होती, तिच आज त्यांचे वंशज आज करत आहेत.

मुळ लेखन = प्रमेंद्र प्रताप सिंह.
मराठी अनुवाद : योगेश फाटक.

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