Friday, December 01, 2006

 

गांधी के आड़ मे भारतीयता पर चोट

गांधी जी की महानता को मै कम नही कह रहा हूँ, पर हमारे सामने जिस तरह से तस्‍वीर प्रस्‍तुत की जा रही है कि आज़ादी केवल गान्‍धी और काग्रेस के संर्घषों का परिणाम है, वह सरासर गलत है, शिक्षा प्रणाली मे मे गांधी को महान तो चन्‍द्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे महान क्रन्तिकारियों को शैतान(आतंकवादी) की संज्ञा दी जाती है। शिवाजी तक का अपमान किया जाता है। यहां तक कि सिक्‍ख धर्म गुरूओं को भी बक्‍सा नही जा रहा है, जो कि सिक्‍खों के लिये भगवान तुल्‍य है।रोमिला थापर जैसे बाम पंथी आपने सर्मथन की कीमत अर्नगल इतिहास पढा कर वसूल कर रहे है।
हर तरफ भारतीयों के भारतीयता और राष्‍ट्रवाद और दुखती रग को दबाने का प्रयास किया जाता है। यह सोची समझी नीति का नही तो क्‍या है। 1857 से लेकर 1920 तक किया गया संग्राम व्‍यर्थ था और 1920 के आस पास गांन्‍धी जी ने जो कुछ किया वही सब कुछ हुआ। ताली एक हाथ से नही बजती है, दोनो हाथो की जस्‍रत होती है। जहाँ देखिये राजीव गांधी, महात्‍मा गांधी, इन्दिरा गांधी, नेहरू आदि के नाम पर परियोजना चालू कर दी जाती है। क्‍या ये ही राज नेता महान थे, लाल बहादुर शास्‍त्री, नंदा, मोरार जी देसाई, चौधरी चरण सिंह, नरसिम्‍हा राव क्‍या ये महान भारत के प्रधान म‍न्‍त्री नही थे। गांधियो के सिग पूछ लगी थी, और ये पूर्वप्रधान मन्‍त्री बिना सिह-पूछ के थे। क्‍या यह दोहरे माप दण्‍ड नही है। चलिये मोरार जी देसाई, चौधरी चरण सिंह गैर का्ग्रेसी थे किन्‍तु लाल बहादुर और राव तो काग्रेसी थे। उनका उपेक्षित किया जाना कहां तक उचित है। बात यही है वे काग्रेसी तो थे पर गांधी न थे।
भारत को अब गांधियों के चंगुल से मुक्‍त करना होगा। यह‍ विरोध आगे जारी रहेगा आप भी इस विरोध मे सामिल होइये, अपनी अभिव्‍यक्ति को सामने लाइये। आखिर आप कब तक चुप रहेगें, अब बोलने का समय है।

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