Sunday, October 08, 2006

 

गांधी वाद खडा चौराहे पर!

देश की सत्‍ताधारी पार्टी कांग्रेस के द्वारा अलग-अलग समय के अलग-अलग नेतृत्व के संबंध को लेकर आज देश दुविधा में है। आज सम्पूर्ण देश सिर्फ यही सोच रहा है कि कांग्रेस तब ठीक थी अथवा अब। मै बात कर रहा हूं आज से 75 साल पहले की घटना कि जब काग्रेंस का नेतृत्‍व अपरोक्ष रूप से गांधी जी करते थे, तब जो स्थिति काग्रेंस मे महत्‍मा गांधी की थी आज उससे भी बढकर सोनिया गांधी की है। व्‍यक्ति तथा उद्देश्‍य अलग अलग है किन्‍तु घटना एक ही है उस समय भी संसद (नेश्‍नल असेम्‍बली) में बम विस्फोट किया गया था आज भी संसद पर हमला किया गया है। तब हमला करने का मकसद देश भक्ति थी और आज वतन के साथ गद्दारी है।

आज संसद पर हमला एक वाले अंतकवादी की फांसी की माफी वही पार्टी कर रही है जिसने वीर शहीदो भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की फांसी माफी का विरोध किया था, गांधी जी का कहना था कि मै अहिंसा के मार्ग रोडा डालने वाले का समर्थन नही करूंगा, तब के देश भक्‍त अहिंसा के मार्ग मे रोडा थे तो आज के गद्दार कौन शान्ति के कबूतर उडा रहे है? यह वही पार्टी है जब तीनो देश भक्‍तो को फांसी पर लटकाया जा रहा था तो काग्रेस गा रही थी- साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। तब से आज तक इस पार्टी ने कमाल करने मे कहीं क‍मी नही की है, तब काग्रेस मे गांधीवादी के रूप मे कमाल हो रहा था तो आज आंतकवादी के रूप मे हो रहा है। आज कग्रेस बीच चौराहे पर खडी है, वह तब से आज के दौर मे 180 अंश पलट चु‍की है। आज काग्रेस के एक मुख्‍यमंत्री फांसी का विरोध कर रहे है तो काग्रेंस नेतृत्‍व मूक दर्शक बनी हुई है, तब भी काग्रेस मूक दर्शक की भातिं खडी थी जब पूरा देश गांधी जी से तीनो शहीदो की प्राणो की भीख मांग रहा था। पूरे देश को पता था कि गांधी जी ही वीर शहीदो भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी से बचा सकते है पर अपनी हटधर्मिता के कारण गाधी जी ने फांसी से माफी बात नही की, अन्‍यथा गांधी ही वह नाम था जो अग्रेजो से कुछ भी मनवा सकता था। उनके सिर पर भूत सवार था कि अहिंसा का, पर अहिंसा की नाक आगे अगेंजो ने कितनो का दमन किया तब कहां था गांधी की अहिंसा। आज उस पार्टी के एक मुख्य मंत्री आंतकवादी का सर्मथन कर रहे हैं। काग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी मौन हैं। इस मौन का अर्थ समर्थन माना जाय या असमर्थन। जहां तक पार्टी प्रवक्ता सिंघवी की बात है वे अपने बयान में मुख्य मंत्री का समर्थन कर चुके हैं। आज देश के समक्ष प्रश्‍न है क्‍या वही गांधी की काग्रेस है यह फिर गांधी के आर्दश गांधी के साथ दफना दिये गये?
वह समय देश की आजादी का था देश के बच्चे की अपेक्षा थी कि गांधी जी इरिविन पैक्ट में अपनी मांगो में भगत सिंह आदि की फांसी को मांफी की मांग रखें किन्तु गांधी ने स्पष्ट कहा था इनकी मांफी हिंसा को बढ़ावा होगी। हम हिंसा का समर्थन नहीं कर सकते। आज देश के प्रत्येक देश भक्त व्यक्ति की इच्छा है कि लोकतंत्र की हत्‍या करने वाले अभियुक्त को फांसी दी जाये, किन्तु आज का नेतृत्व कुछ और सोच रहा है। यही बात मन में खटकती है। प्रश्न उठता है कि क्या कांग्रेस सदैव देश की सामूहिक इच्छा के विपरीत काम करेगी? इससे तो यही प्रतीत होता है गाधी वाद दो अक्‍टूवर तक श्रद्धा के फूलो तथा नोटो पर फोटो तक ही सीमित रह गया है। और इन नेताओ ने गांधीवाद को वोट की खातिर चौरहे पर लाकर खडा कर दिया है। आज उनके वंशज गांधी वाद की नीव मे माठा डालने का काम कर रहे है । जो भूल गांधी ने तब की थी आज उनके वंशज कर रहे है।

मूल लेखक : प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह (हिन्‍दी)
अनुवाद कर्ता योगेश फाटक जी (मराठी)

Comments: Post a Comment



<< Home

This page is powered by Blogger. Isn't yours?