Thursday, November 30, 2006
भारत दुर्दशा के जिम्मेदार
गांधी जी, महान थे, महान है और महान रहेगे, पर उन्हे जितना महान बना दिया गया वे महान बने रहे किन्तु उनकी महानता के आगे अन्य स्वातंत्रता संग्राम सेनानियों के महत्व को नही भूलना चाहिये। तत्कालीन काग्रेसी सरकार भारत मे एक प्रकार से नेहरू गांधी परिवार की अघोषित राजतन्त्र लाना चाहती थी। इसी के परिपेक्ष मे भारतीय राजनीति के स्वरूप को नेहरू गांधी तक सीमित रखा गया। तत्कालीन सरकार की सोची समझी नीति थी कि भारतीयों मे गांधी के नाम को इस प्रकार रमा बसादिया जाये कि जनता इसी मे बसी रहे। पहले तो गांधी की कीमत एक रूपये कि थी, अब उसे एक हजार मे बदल दिया गया है1 पहले टिकट मे थे अब नोटो मे। क्या सराकर के नजरो मे गांधी से महान और कोई नही है, क्या नोटो पर गांधी जी का एकाधिकार बरकारार रहेगा।
भारत रत्न मुद्दे की बात कहू तो सुभाष चन्द्र बोस, सरदार पटेल और गुलजारी लाल नन्दा की औकात इतनी गिरि हुई थी कि इनहे राजीव गान्धी को बाद भारत रत्न दिया गया। यही इन्दिरा गान्धी के लिये उन्हे 1971 मे दिया गया और सुभाष चन्द्र बोस, सरदार पटेल और गुलजारी लाल नन्दा और अन्य देश भक्तो को उनसे बाद यह पुरस्कार दिया गया क्या यह अपमान नही है।
जिस प्रकार महात्मा गांधी को भारत रत्न नही दिया दिया था (सम्मान मे क्योकि वे भारत रत्न से बढ़कर थे) उसी प्रकार अन्य राष्ट्र भक्तो के अपने से कनिष्टो के बाद यह सम्मान देना उनका अपमान नही है। सर्वोच्च न्यायालय मे एक बार ऐसा ममला हुआ था जब तत्कालीन सरकार ने अपने चहेते को मुख्य न्यायधीश बनाने के लिये उच्च न्यायालय की वरिष्ठता का उल्लंघन करते हुये कई न्यायधीशो से कनिष्ट को मुख्य नयायाधीश बना दिया था और सारे बरिष्ठ न्याधीशो ने अपने वरिष्टता के सम्मान के लिये अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था, कोई अपने कनिष्ट के अधीन कैसे रहना पंसन्द कर सकता है और नियम-नियम होता है, वरिष्ठो को ही वरीयता दी जाती है। चाहे बरिष्ट न्याधीश का कार्यकाल एक दिन ही शेष क्यो न हो। वह दिन दूर नही जब 'गान्धी सर्टिफिकेट' के कारण सोनिया, प्रियका और रहुल गान्धी को भारत रत्न, हमारे प्रधानमन्त्री से आगे न दे दिया जाये।
मै राष्ट्रपिता के रूप मे महात्मा गांधी को सर्वमान्य नही मानता हूँ। सरकार के द्वारा भारतीयो पर थोपा गया एक बोझ है, जिसे हम ढोरहे है। जनमत सर्वेक्षण से ही स्पष्ट हो सकता है कि महात्मा गांधी कितने लोकप्रिय है। धोती और लाठी के बल पर विरोध प्रर्दशन किया जा सकता है, आजादी नही प्राप्त की जा सकती है। गांधी जी के साथ उस समय भारत के सबसे बऐ राजनैतिक दल का्ग्रेस का हाथ था जिसे सुभाष चन्द्र बोस, गोपाल कृष्ण गोखले, मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय ने सीचा था इस दल के कारण अंग्रेज गान्घी जी भाव देते थे, अगर काग्रेस न होती तो गांघी जी को अग्रेजो न कब का ठिकाने लगा दिया होता। अग्रेज जानते थे कि ये बुड्डा जब तक है हम मन मानी कर सकते है और उन्हे भी अपने प्राण प्रिय थे, अग्रेज यह भी जानते थे कि गांधी जी ही अग्रेजो की ढाल है, गान्धी के रहते अग्रेजो का कोई बाल बाका नही कर सकता है। गान्धी को रास्ते से हटना उनके लिये ओखली मे सिर डालने के बराबर होगा। का्ग्रेस जो गरम-नरम दल मे बट गई थी वह गान्धी के हटने से फिर गरम मे परिवर्तित हो सकती थी, और अग्रेंजों के खिलाफ व्यापक क्रान्ति हो सकती थी। और यह अग्रेजो के हित मे न था, और गांधी जी का आग्रेजो ने गोल मेज सम्मेलन मे चाय पिला कर खूब भारत के खिलाफ खूब उपयोग किया।
अब समय आ गया है कि विचार परिवर्तन कान्ति का, अपनी बात रखने का, मै रामदेव महाराज के बातो से आज ही सहमत नही हुआ हूँ, मैने अपने पहले के लेखों मे इसका वर्णन किया, आज की सरकार और काग्रेस गांधी जी को कितना ही महान कहे, किन्तु किसी अन्य देश भक्त के बलिदान के नगण्य न समझा जाये।
भारत रत्न मुद्दे की बात कहू तो सुभाष चन्द्र बोस, सरदार पटेल और गुलजारी लाल नन्दा की औकात इतनी गिरि हुई थी कि इनहे राजीव गान्धी को बाद भारत रत्न दिया गया। यही इन्दिरा गान्धी के लिये उन्हे 1971 मे दिया गया और सुभाष चन्द्र बोस, सरदार पटेल और गुलजारी लाल नन्दा और अन्य देश भक्तो को उनसे बाद यह पुरस्कार दिया गया क्या यह अपमान नही है।
जिस प्रकार महात्मा गांधी को भारत रत्न नही दिया दिया था (सम्मान मे क्योकि वे भारत रत्न से बढ़कर थे) उसी प्रकार अन्य राष्ट्र भक्तो के अपने से कनिष्टो के बाद यह सम्मान देना उनका अपमान नही है। सर्वोच्च न्यायालय मे एक बार ऐसा ममला हुआ था जब तत्कालीन सरकार ने अपने चहेते को मुख्य न्यायधीश बनाने के लिये उच्च न्यायालय की वरिष्ठता का उल्लंघन करते हुये कई न्यायधीशो से कनिष्ट को मुख्य नयायाधीश बना दिया था और सारे बरिष्ठ न्याधीशो ने अपने वरिष्टता के सम्मान के लिये अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था, कोई अपने कनिष्ट के अधीन कैसे रहना पंसन्द कर सकता है और नियम-नियम होता है, वरिष्ठो को ही वरीयता दी जाती है। चाहे बरिष्ट न्याधीश का कार्यकाल एक दिन ही शेष क्यो न हो। वह दिन दूर नही जब 'गान्धी सर्टिफिकेट' के कारण सोनिया, प्रियका और रहुल गान्धी को भारत रत्न, हमारे प्रधानमन्त्री से आगे न दे दिया जाये।
मै राष्ट्रपिता के रूप मे महात्मा गांधी को सर्वमान्य नही मानता हूँ। सरकार के द्वारा भारतीयो पर थोपा गया एक बोझ है, जिसे हम ढोरहे है। जनमत सर्वेक्षण से ही स्पष्ट हो सकता है कि महात्मा गांधी कितने लोकप्रिय है। धोती और लाठी के बल पर विरोध प्रर्दशन किया जा सकता है, आजादी नही प्राप्त की जा सकती है। गांधी जी के साथ उस समय भारत के सबसे बऐ राजनैतिक दल का्ग्रेस का हाथ था जिसे सुभाष चन्द्र बोस, गोपाल कृष्ण गोखले, मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय ने सीचा था इस दल के कारण अंग्रेज गान्घी जी भाव देते थे, अगर काग्रेस न होती तो गांघी जी को अग्रेजो न कब का ठिकाने लगा दिया होता। अग्रेज जानते थे कि ये बुड्डा जब तक है हम मन मानी कर सकते है और उन्हे भी अपने प्राण प्रिय थे, अग्रेज यह भी जानते थे कि गांधी जी ही अग्रेजो की ढाल है, गान्धी के रहते अग्रेजो का कोई बाल बाका नही कर सकता है। गान्धी को रास्ते से हटना उनके लिये ओखली मे सिर डालने के बराबर होगा। का्ग्रेस जो गरम-नरम दल मे बट गई थी वह गान्धी के हटने से फिर गरम मे परिवर्तित हो सकती थी, और अग्रेंजों के खिलाफ व्यापक क्रान्ति हो सकती थी। और यह अग्रेजो के हित मे न था, और गांधी जी का आग्रेजो ने गोल मेज सम्मेलन मे चाय पिला कर खूब भारत के खिलाफ खूब उपयोग किया।
अब समय आ गया है कि विचार परिवर्तन कान्ति का, अपनी बात रखने का, मै रामदेव महाराज के बातो से आज ही सहमत नही हुआ हूँ, मैने अपने पहले के लेखों मे इसका वर्णन किया, आज की सरकार और काग्रेस गांधी जी को कितना ही महान कहे, किन्तु किसी अन्य देश भक्त के बलिदान के नगण्य न समझा जाये।
Comments:
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शाबाश प्रमेन्द्र जी,
वैसे बहुत आक्रोश है मन में? अच्छा किया जो निकाल दिया वरना मन में दबा आक्रोश पीड़ा देता है।
वैसे बहुत आक्रोश है मन में? अच्छा किया जो निकाल दिया वरना मन में दबा आक्रोश पीड़ा देता है।
JAI SHUBASH
JAI AJAD
JAI GHODSE
GHODSE JI AMAR RAHE USE HAMARI BAHUT BAHUT DHANYAVAAD JHO UNHONE KIYA
GHANDHI PARIVAR MURDABAD
JAI AJAD
JAI GHODSE
GHODSE JI AMAR RAHE USE HAMARI BAHUT BAHUT DHANYAVAAD JHO UNHONE KIYA
GHANDHI PARIVAR MURDABAD
gandhibad vastav main ek vichar hai jo hindutwa or vedo ki sanskriti ko nast karane ke lie upyog ho raha hai..........
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